चिकित्सकों का एक तबका क्यों कर रहा है आयुष्मान भारत की आलोचना?
सुमन कुमार
एक ओर जहां केंद्र सरकार पूरे देश में निजी और सरकारी अस्पतालों के जरिये देश के 50 करोड़ वंचित तबके के लोगों को स्वास्थ्य की सुविधा मुहैया कराने के लिए लाई गई आयुष्मान भारत योजना को अपने लिए गेम चेंजर मान रही है वहीं सरकारी डॉक्टरों का एक तबका इस योजना की खुली आलोचना में उतर आया है। आलोचना का झंडा उठाया है देश के सबसे प्रतिष्ठित माने जाने वाले अस्पताल दिल्ली के एम्स के कुछ डॉक्टरों ने।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के चिकित्सकों समेत लोक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सरकार की प्रमुख एवं महत्त्वकांक्षी स्वास्थ्य योजना ‘आयुष्मान भारत’ की सामर्थ्य पर बुधवार को सवाल उठाते हुए दावा किया कि यह जनता के धन को निजी क्षेत्र को भेजने का आधिकारिक माध्यम है। वैसे ये वही आरोप हैं जो देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी तथा अन्य विरोधी दल भी सरकार पर लगाते रहे हैं। दिलचस्प तथ्य यह है कि विरोध करने वाले अधिकांश दलों के शासन वाले राज्यों में आयुष्मान भारत से मिलती जुलती योजना पहले से ही लागू है मगर इस योजना का अखिल भारतीय स्तर पर लागू होना कई लोगों को रास नहीं आ रहा है।
एम्स के परिसर में ‘आयुष्मान भारत : तथ्य एवं कल्पना’ पर पैनल चर्चा के दौरान डॉक्टरों और विशेषज्ञों ने जमकर इस योजना की आलोचना की। पूर्व में ऐसी स्वास्थ्य लाभ योजनाओं के कार्यान्वयन का उल्लेख करते हुए विशेषज्ञों ने विश्वस्तरीय स्वास्थ्य योजना का लाभ पहुंचाने के लिए तत्काल सरकारी अस्पतालों की स्थिति को सुदृढ़ करने पर जोर दिया।
वैसे ऐसी परिचर्चा के दौरान कुछ असुविधाजनक सवाल पूछने की जहमत किसी ने नहीं उठाई कि आखिर देश की आजादी के 70 सालों बाद भी देश में एम्स जैसा सिर्फ एक ही संस्थान खड़ा हो पाना किसकी जिम्मेदारी है। जहां देश के हर राज्य में कम से कम एक ऐसा संस्थान होना चाहिए था वहां पूरे देश में सिर्फ एक ऐसा संस्थान बनाकर अपनी पीठ ठोकने वालों से कोई सवाल जवाब क्यों नहीं हो रहा है।
इस परिचर्चा में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सोशल मेडिसिन एंड कम्युनिटी हेल्थ के प्रोफेसर डॉ विकास वाजपयी ने कहा कि आयुष्मान भारत और कुछ नहीं बल्कि नयी बोतल में पुरानी शराब है। वहीं एम्स में बायोकेमिस्ट्री विभाग के प्रमुख सुब्रतो सिन्हा ने कहा कि आयुष्मान भारत बाह्य रोगी विभाग की उपचार संबंधी सुविधाएं नहीं उपलब्ध कराता जो स्वास्थ्य व्यय का बड़ा घटक है और यह भर्ती किए जाने वाले रोगियों के उपचार से ज्यादा महंगा है।
ये सही है कि आयुष्मान भारत योजना में कुछ खामियां हैं और समय के साथ सरकारें इसे दूर करेंगी, मगर सरकार की किसी भी अच्छी पहल को सीधे-सीधे खारिज कर देना कहीं से तर्कसंगत नहीं माना जा सकता। भारत में सरकारी पैसे पर ऐश करने की लत पाल चुका एक तबका किसी भी बदलाव को संदेह की नजर से देखता है मगर ये स्थापित तथ्य है कि दुनिया के सबसे विकसित देश अमेरिका में पूरा जन स्वास्थ्य क्षेत्र बीमा के भरोसे चलता है। भारत में अकसर ये आरोप लगाया जाता है कि बीमा कंपनियां बीमित व्यक्ति के इलाज के खर्च का भुगतान करने में आनाकानी करती हैं। जाहिर है कि ये आयुष्मान भारत की खामी नहीं है बल्कि बीमा क्षेत्र के नियामकीय ढांचे की कमजोरी का मामला है। बेहतर है कि इस कमजोरी को दूर किया जाए न कि एक अच्छी योजना को खराब बताकर खारिज किया जाए।
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